Mahashay Dharampal Gulati Biography in Hindi महाशय धर्मपाल गुलाटी जीवन परिचय ( एम. डी. एच. मसाले )
महत्वपूर्ण बिन्दू
Mahashay Dharampal Gulati Biography in Hindi महाशय धर्मपाल गुलाटी जी का जन्म 27 मार्च 1923 दिन मंगलवार को सियालकोट, उत्तर-पूर्व पंजाब, पाकिस्तान में हुआ था। इनके पिता का नाम महाशय चुन्नी लाल और माता का नाम माता चानन देवी था। उन्होंने मात्र 10 वर्ष की उम्र में ही अपनी स्कूली शिक्षा छिड़ दी, जब वह पांचवी कक्षा में थे।
7 सितंबर 19947 को भारत-पाक विभाजन के समय उन्होंने अपने परिवार के साथ पाकिस्तान से भारत ( दिल्ली ) लौट आए। वह दिल्ली के करोल बाग में भतीजी के वहाँ रहने लगें जहाँ पर पानी और बिजली की आपूर्ति नही थी। उन का उपनाम मसाला किंग, दादाजी, महाशयजी और मसलों के राजा के भी नाम से जाने जाते हैं।
आज यह प्रसिद्ध है तो केवल एमडीएच मसलों के मालिक होने के नाते, क्योंकि इनकी मसाले देश में नही केवल, वल्कि विदेशों में भी मसाले बेचे जाते हैं। महाशय धर्मपाल गुलाटी की संपत्ति – ( इनकी कुल संपत्ति 940 करोड़) एमडीएच में 80% का हिस्सेदारी हैं, 15 कारखानों, 20 स्कूलों और 1 अस्पताल के मालिक थे।
इनकी आय लगभग वर्ष 2017 के अनुसार 21 करोड़ हैं। उनकी मृत्यु 97 वर्ष की उम्र में हो गईं, 3 दिसंबर 2020 को माता चानन देवी हॉस्पिटल, नई दिल्ली। महाशय धर्मपाल गुलाटी जी का कार्यालय 9/44, औद्योगिक क्षेत्र, कीर्ती नगर, दिल्ली -110015 .
वर्ष 2016 में एबीसीआई वार्षिक पुरस्कारों में ” इंडियन ऑफ द ईयर ” से सम्मानित किया गया, वर्ष 2017 में लाइफटाइम अचिवमेंट के लिए उत्कृष्टता पुरस्कार दिया गया।
M D H वाले दादा जी से सीखें, जीने के 5 मंत्र
आज की लर्निंग सीरीज में हम बात करेंगे महाशय श्री धर्मपाल गुलाटी जी की उनकी जिंदगी से सीखिए वह पांच बातें, जो आपकी जिंदगी को बदल सकती हैं –
लर्निंग नंबर – 1.
जरूरी नहीं कि हर कोई अधिकारी बने, हम में से बहुत सारे लोगों का सपना होता है सरकारी जॉब करनी है और ऑफिसर बनना हैं। लेकिन धर्मपाल गुलाटी जी के बारे में कहा जाता है कि वह 5 क्लास में जब फेल हो गए थे, तो इन्होंने स्कूल जाना बंद कर दिया था, पढ़ाई लिखाई में मन नहीं लगता था।
उनके पिताजी परेशान थे की बच्चा करेगा क्या ? बहुत दिनों तक उन्होंने समझाया कि स्कूल चले जाओ लेकिन वह नहीं जाते थे, पढ़ने लिखने में मन ही नहीं लगता था, तो इनके पिताजी को लगा कि क्यों न उन को कुछ सिखाया जाए। कोई कारीगरी सीख ले, कोई हुनर सीख ले कम से कम, कुछ कमा कर के खातों पाएगा।
तो उनके पिताजी ने इन्हें लकड़ी के कारीगरी सिखाने के लिए एक बढ़ई के यहां भेज दिया, 8 महीनों तक उस बढ़ई के यहां जाते थे वापस आ जाते थे लेकिन वहां पर भी इनका मन नहीं लगता था। उन्होंने कहा पापा जी, मुझे यह काम नहीं करना हैं, उनके पिताजी ने इन्हें चावल के फैक्ट्री में काम करने के लिए भेजा वहां भी कुछ महीनों तक काम किये, लेकिन वहां भी उनको नहीं जमा, अपने पापा से कहा यह भी मुझे नहीं करना है।
उनके पिताजी ने उन्हें हार्डवेयर की एक दुकान थी, वहां पर भेजा कि वहां जाकर काम सीखो, हार्डवेयर का काम सीखा वह भी उनको नहीं जमा, वह भी उन्होंने नहीं किया। उनके पिताजी ने सोचा क्या करें, तो जो उनका पुश्तैनी काम था, उनकी खुद की दुकान थी मसाले वाली, वहां पर अपने बच्चे धर्मपाल गुलाटी जी को बैठा दिया और कहा कि बेटा अब तुम्हें यही संभालनी है ।
18 साल की उम्र में 18 वर्ष की उम्र में, उनके पिताजी ने उनकी शादी करवा दी और पिताजी को लगा की बस मेरी जिंदगी के जिम्मेदारियां खत्म है और धर्मपाल की जिंदगी धर्मपाल जाने । लेकिन धर्मपाल गुलाटी जी के जिंदगी में उस उम्र में, इतना बड़ा संकट आया की अगर कोई और होता तो शायद बिखर जाता लेकिन धर्मपाल गुलाटी जी वहां से निखरना शुरू किया।
लर्निंग नंबर – 2.
किसी ने सच ही कहा हैं ” यह भी कट जाएगा” जब भी संकट का वक्त आए तो याद रखना की यह भी कट जाएगा, यही है महाशय श्री धर्मपाल गुलाटी जी की लर्निंग नंबर दो, सियालकोट जहां पर महाशय धर्मपाल गुलाटी जी का जन्म हुआ, जहां उनका परिवार था । जब 1947 में देश विभाजन हुआ, तो वह जगह पाकिस्तान में आ गई और उस वक्त दंगे भड़क गए थे।
महाशय धर्मपाल गुलाटी जी को अपनी जान बचाने के लिए वहां से भागना पड़ा। रातों-रात ट्रेन पकड़ कर लाहौर से अमृतसर पहुंचे जिस ट्रेन में चढ़े थे उसमें लाशें ही लाशें बिछी थी। अपनी जान पर खतरा था, उस संकट के वक्त में भी उन्होंने भगवान पर भरोसा रखा कि सब कुछ ठीक होगा।
शायद हिंदुस्तान जाने के बाद में तस्वीर बदल जाए फिर से मेरी जिंदगी में वह खुशियां लौट आए और जो मैं करना चाहता हूं वह मैं कर पाऊं 1947 में जब संकट की इतनी बड़ी घड़ी सियालकोट में रह रहे धर्मपाल गुलाटी जी की जिंदगी में आई तो उन्होंने हार नहीं मानी उस ट्रेन में सवार हुए अमृतसर पहुंचे ।
पूरी रात वहीं रुके अगली सुबह फिर से ट्रेन पकड़ के दिल्ली के करोल बाग में अपनी बहन के यहां पहुंचे। और वहां से महाशय धर्मपाल गुलाटी जी के जिंदगी का वह सफर शुरू हुआ जिसकी वजह से आज आप और हम उन्हें याद कर रहे हैं।
लर्निंग नंबर – 3.
” दोबारा से शुरू करो, जिंदगी में दोबारा से शुरुआत करने से ना घबराए “ क्या पता अबकी बार जिंदगी आप अपने हिसाब से बनाएं। महाशय धर्मपाल गुलाटी जी की जिंदगी में जब 1947 के विभाजन के बाद में बंटवारे के बाद में, इतना बड़ा संकट आ गया की धर्मपाल गुलाटी जी को सियालकोट छोड़कर के दिल्ली आना पड़ा।
अपने बहन के घर पर रहने लगे, शरण में आ गए यहां बचना था। जान भी बचानी थी पैसा भी कमाना था, जिंदगी में आगे भी बढ़ना था। उनके पास में उस वक्त मात्र 1500 रुपए थे, जो कि उनकी कुल जमा पूजी थी जो वहां मिर्च मसालों का व्यापार करते थे उससे वह पैसा उन्होंने कमाया था।
उन 1500 रुपया में से ₹600 का उन्होंने टंगा खरीदा और दिल्ली में नई दिल्ली स्टेशन से कुतुब रोड, अरुण बाग वहां टंगा चलाने लगे। 2 महीनों तक टंगा चलाया लेकिन समझ में आ गया कि यह मेरी बस की बात नहीं है, यह मेरा काम नहीं है । अंदर से व्यापारी थे वह बिजनेस उन्होंने देखा था।
इसलिए उन्होंने अपना टंगा बेचा और जो पैसा मिला उससे एक छोटा सा लकड़ी का खोखा बनाएं जो छोटी सी दुकान होती है। उसका नाम रख दिया मैसियान की हड्डी सियालकोट वाले और यहां से उन्होंने अपनी जिंदगी की दोबारा से शुन्य से शुरुआत किया जो आगे चलकर 2000 करोड़ रुपए का मसालों का बिजनेस बना।
लर्निंग नंबर – 4.
एक बात आपसे कहना चाहता हूं “रखो भरोसा खुद पर क्यों ढूंढता है फरिश्ते पंछियों के पास नहीं होते हैं, नक्शे फिर भी मिल जाते हैं उन्हें रास्ते।” महाशय धर्मपाल गुलाटी जी ने जब एक छोटे से लकड़ी के खोखे से अपनी दुकान की शुरुआत की, जिंदगी की दोबारा शुरुआत की उसका नाम रखा मैसियान हड्डी सियालकोट वाले तो पूरी मेहनत के साथ में मिर्च मसालों का अपना व्यापार शुरू किया।
पूरी मेहनत की, उनकी क्वालिटी को कभी भी गिरने नहीं दिया, हमेशा उसे आगे बढ़ाने की कोशिस कि और उसकी क्वालिटी को और सुधारने की कोशिश की धीरे-धीरे आस पास के लोगों को मालूम चलने लगा कि यह तो वही है सियालकोट के दिग्गी मिर्च मसाले वाले, जो कस्टमर थे वह बढ़ने लगे ।
इनकी मसालों के शुद्धता और उसकी जो क्वालिटी थी इतनी कमाल की थी, कि धीरे धीरे लोग जो है उनकी संख्या बढ़ने लगी । इन्होंने 1968 में दिल्ली में अपनी मसालों की फैक्ट्री खोल दी थी, उसके बाद में इनके मसाले पूरे हिंदुस्तान में और यहां तक की बाहर के देशों में भी एक्सपोर्ट होने लगे थे।
मैसियान की हड्डी यानी कि M D H एक इतनी बड़ी कंपनी बन गई की मसालों की जितनी कंपनी है उनके सामने आज भी मुश्किल है इस कंपनी को टक्कर दे पाना। जब सवाल आया कि क्यों ना इस कंपनी का ब्रांड एम्बेसडर को चुना जाये advertisement के लिए , तो महाशय धर्मपाल गुलाटी जी ने कहा कि मेरा ब्रांड है मुझे मालूम है कि कैसे मसाले हैं कितने शानदार है, इस के बारे में कोई तीसरा आकर के क्या बताएगा।
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तो यह खुद उन मसालों के विज्ञापनों का फेस बने, अखबारों में विज्ञापन छपीने लगा और प्रॉपर्टी बढ़ने लगी और धीरे धीरे धीरे M D H जो थी वह कंपनी आज दुनिया भर में 2000 करोड़ रुपए का बिजनेस कर रही है। महाशय धर्मपाल गुलाटी जी जब इस दुनिया को छोड़ कर के गए तो वह कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर थे, सफेद मूंछे और लाल पगड़ी उनकी पहचान थी।
लर्निंग नंबर – 5.
मुस्कान बांटते चलो, महाशय धर्मपाल गुलाटी जी का तनख्वाह 2016 में 21 करोड़ रुपए थी, जोकि उस वक्त की बड़ी बड़ी कंपनी के C O से भी ज्यादा थी इतनी मोटी तनख्वाह होने के बाद में भी उनका मानना था की मुस्कान बांटते चलो अपनी सैलरी का 90% हिस्सा इतना बड़ा हिस्सा वह दान कर देते थे, डोनेट कर देते थे।
यही कहते थे कि यही जो है सबसे बड़ी शांति है, वह हमेशा कहते थे पैसे में सुख दो घड़ी का और सेवा में सुख शांति जिंदगी भर का, इसीलिए वह शांति अगर पानी है तो मुस्कान बांटते चलिएगा जितना कुछ है उसे बांटते चलिएगा। यही सिखा कर गए हैं अब धर्मपाल गुलाटी जी हमारे बीच में नहीं है।
लेकिन उनकी जिंदगी से जितना सीखें, उतना कम होगा, हमेशा सादा जीवन जिया कभी कोई बुरा नशा, कोई बुरी लत उन्होंने नहीं अपनाई उनकी जिंदगी में उनका फंडा था हार्ड वर्क करना है। जी तोड़ मेहनत की और शून्य से शुरुआत करके 2000 करोड़ रुपए की मसाला कंपनी खड़ी कर दी ।
18 घंटे इस उम्र में भी वह मेहनत करते थे काम करते थे और हमेशा मानते थे कि जिंदगी में आगे बढ़ने का एक ही फार्मूला है जिसे हार्ड वर्क कहते हैं। महाशय धर्मपाल गुलाटी जी जो आज हमारे बीच में नहीं है बस यही कहना चाहता हूं आपके स्वाद हमारे बीच में हमेशा रहेंगे और अब तो लगता है कि स्वर्ग भी आप मसालेदार बना देंगे आप हमेशा हम सभी को याद रहेंगे हम सभी के दिलों में जिंदा रहेंगे ।
उम्मिद करते हैं कि आप सभी को यह हमारा लेख ” Mahashay Dharampal Gulati Biography in Hindi “ पसंद आया होगा यदि पसंद आया हैं तो यह लेख ” Mahashay Dharampal Gulati Biography in Hindi “ अपने दोस्तों के साथ शेयर करें , आप सभी को बहुत बहुत धन्यवाद ।
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